लोकसभा के लिए बीते दो चरणों में कम मतदान चिंता का विषय़ बना हुआ है।
चुनाव आयोग ने भी इसपर निराशा जताई है। शुक्रवार को चुनाव आयोग ने कहा कि शहरी क्षेत्रों के वोटर मतदान के प्रति ज्यादा ही उदासीन हैं।
बता दें कि 2019 के मुकाबले पहले चरण के मतदान में 4 फीसदी और दूसरे चरण में तीन फीसदी की कमी देखी गई है।
पहले चरण में 102 सीटों पर वोटिंग हुई थी और 66.14 फीसदी वोटिंग दर्ज की गई थी। वहीं दूसरे चरण में 88 सीटों पर 66.71 फीसदी वोट पड़े थे।
पहले दो चरणों में शहरी सीटों पर मतदान में खासी कमी देखी गई है। लंबे समय से चुनाव आयोग प्रयास करता है कि शहरी सीटों वर वोटिंग बढ़े लेकिन इसका कोई फायदा नहीं दिख रहा है।
उलटे इस बार वोटिंग पर्सेंट घट गया है। गाजियाबाद में इस बार 6 फीसदी कम यानी केवल 49.88 फीसदी वोटिंग दर्ज की गई जो कि 2019 में 55.88 फीसदी थी।
इसतके अलावा गौतम बुद्ध नगर में 2019 के 60.4 फीसदी की तुलना में 53.63 फीसदी वोटिंग ही दर्ज की गई।
26 अप्रैल को बेंगलुरु सेंट्रल और बेंगलुरु साउथ सीट पर भी वोटिंग करवाई गई थी। यहां क्रमशः 54.06 और 53.27 पर्सेंट ही वोटिंग हुई।
रिपोर्ट में चुनाव आयोग के सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि चुनाव आयोग द्वारा वोटिंग बढ़ाने के लिए इतने अभियान चलाने के बाद भी शहरी वोटरों पर कोई फर्क नहीं पड़ा है। चुनाव आयोग का कहना है कि बाकी बचे पांच चरणों में मतदान बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास किया जाएगा।
वहीं मतदान के बाद फाइनल डेटा रिलीज करने को लेकर भी विवाद चल रहा है। पहले चरण के मतदान के 11 दिन बाद फाइनल आंकड़े जारी किए गए थे।
वहीं दूसरे चरण के चार दिन बाद डेटा रिलीज किया गया। चुनाव आयोग का कहना है, सही डेटा रिलीज करना हमारी जिम्मेदारी है। इसमें पारदर्शिता का भी पूरा खयाल रखा जाता है।
चुनाव आयोग ने कहा कि हर बूथ पर पीठासीन अधिकारी की देखरेख में फॉर्म 17 सी को एजेंट्स के सामने भी पेश किया जाता है। ऐसे में बूथ लेवल का भी डेटा पारदर्शी रहता है। चुनाव आयोग ने कहा कि आने वाले चरणों में आंकड़ा और जल्दी पेश करने की कोशिश की जाएगी।