हरियाणा में मंगलवार को बड़ा सियासी घटनाक्रम तब देखने को मिला जब मनोहर लाल खट्टर ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
एक दिन पहले जिन मनोहर लाल खट्टर की पीएम मोदी ने खुले मंच पर तारीफ की थी, उन्हें आज सीएम पद छोड़ना पड़ा। बीजेपी नेतृत्व ने ओबीसी चेहरा नायब सिंह सैनी को राज्य की कमान सौंपी है।
हरियाणा में बीजेपी और जेजेपी का गठबंधन टूट गया है, लेकिन फिर भी निर्दलीयों के साथ बीजेपी को राज्य में बहुमत हासिल है।
खट्टर को अचानक से मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद यह सवाल उठने लगा है कि आखिर बीजेपी ने ऐसा क्यों किया? क्या एंटी-इनकमबेंसी को कम करने की चाल है या फिर कोई और वजह?
दो बार से सीएम थे खट्टर, एंटी-इनकमबेंसी को कम करने की कोशिश
आरएसएस के बैकग्राउंड से आने वाले मनोहर लाल खट्टर को बीजेपी ने साल 2014 में हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाया था।
इसके बाद जब 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और जेजेपी की सरकार बनी तो फिर से खट्टर दूसरी बार राज्य के सीएम बने।
हालांकि, इस बीच किसान आंदोलन से लेकर तमाम अन्य मुद्दों की वजह से खट्टर सरकार के खिलाफ एंटी इनकमबेंसी बनने लगी थी।
खट्टर नौ साल से ज्यादा समय तक हरियाणा के सीएम रहे। सूत्रों के अनुसार, बीजेपी लीडरशिप ने कुछ महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में एंटी-इनकमबेंसी को दूर करने के लिए खट्टर को नए चेहरे से बदलने पर विचार किया।
बीजेपी ने ऐसा ही कदम गुजरात और उत्तराखंड में भी उठाया था, जहां उसे बाद में चुनाव में सफलता भी मिली।
बीजेपी 2021 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय रूपाणी और उत्तराखंड में तीरथ सिंह रावत की जगह नया चेहरा देकर चुनाव में उतरी थी और दोनों ही जगह फिर से सरकार बनाने में कामयाब रही थी।
हरियाणा पिछले कुछ सालों में जाट आंदोलन, किसान आंदोलन, राम रहीम की गिरफ्तारी के दौरान हुई हिंसा समेत कई मुद्दों के दौरान सुर्खियों में रहा, जिसने खट्टर की छवि पर भी असर डाला।
लोकसभा सीटें मांग रही थी जेजेपी, कर दिया काम ‘तमाम’
2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में किसी को बहुमत नहीं मिलने की वजह से राज्य में दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (JJP) ने बीजेपी को समर्थन दिया, जिसके बाद दुष्यंत चौटाला डिप्टी सीएम बनाए गए।
पिछले कुछ समय से बीजेपी और जेजेपी के बीच रिश्ते अच्छे नहीं रह गए थे। इसके पीछे एक वजह जेजेपी द्वारा लोकसभा चुनाव के लिए दो सीटों की मांग भी थी।
दुष्यंत चौटाला ने दिल्ली में सोमवार को बीजेपी प्रमुख जेपी नड्डा से मुलाकात भी की थी। जेजेपी को भिवानी-महेंद्रगढ़ और हिसार की लोकसभा सीट देने की मांग की गई, जिसे बीजेपी ने ठुकरा दिया।
दरअसल, बीजेपी का तर्क है कि पिछले लोकसभा चुनाव में हरियाणा की सभी दस सीटों पर उन्हें जीत मिली। ऐसे में कैसे जेजेपी को दो सीटें दे दी जाएं।
इसके अलावा, कुछ समय पहले भी जेजेपी हरियाणा की सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारने की बात करती आई थी। बीजेपी हरियाणा के प्रभारी बिप्लब देब और दुष्यंत चौटाला के बीच भी तकरार किसी से छिपी हुई नहीं है।
बीजेपी से अलग होने के बीच दुष्यंत चौटाला को बड़ा झटका भी लगा। दरअसल, चौटाला की मंगलवार को बुलाई गई बैठक से पांच विधायक गायब रहे। ऐसे में पार्टी में संभावित टूट की भी अटकलें लगने लगी हैं।
जाट और गैर जाट के जरिए बीजेपी की चाल!
90 सदस्यीय हरियाणा विधानसभा में बीजेपी के 41 विधायक हैं। उसे सात में से कुल छह निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन हासिल है।
वहीं, गोपाल कांडा ने भी बीजेपी का समर्थन किया है। इस तरह से भाजपा सरकार को हरियाणा में बिना जेजेपी भी कोई खतरा नहीं है।
राज्य में कांग्रेस के पास 30, जेजेपी के पास दस विधायक हैं। नायब सैनी को सीएम बनाकर दरअसल बीजेपी ने जाट और गैर जाट की चाल चली है।
हरियाणा में सबसे ज्यादा 27 फीसदी जाट वोटर्स हैं। आमतौर पर प्रदेश में जाट कांग्रेस, जेजेपी और आईएनएलडी को वोट करते रहे हैं।
बीजेपी ने ओबीसी चेहरे नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाकर इसकी तोड़ निकाली है। बीजेपी को उम्मीद है कि जाट वोटर्स भले ही तीन हिस्सों में बंट जाए, लेकिन ओबीसी मुख्यमंत्री देकर गैर जाट वोट उसके ही हिस्से में आएगा।
ऐसे में आगामी लोकसभा और फिर विधानसभा चुनाव में पार्टी को इसका फायदा हो सकता है। वहीं, ओबीसी सीएम बनाकर पार्टी लोकसभा चुनावों के लिए अन्य राज्यों में भी ओबीसी वोटबैंक को मैसेज दिया है।