पटना । बिहार में अगले साल विधानसभा चुनाव से पहले चार सीटों पर उपचुनाव हुए। चार सीटों के उपचुनाव विधानसभा चुनाव से पहले बिहार का सेमीफाइनल माना जा रहा था। इन उपचुनावों में विपक्षी महागठबंधन को बड़ा झटका लगा है। सूबे की सभी चार सीटों पर चुनावी रण जीतकर सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने क्लीन स्वीप कर दिया है। ऐसा तब है जब इन चार में से तीन सीटों पर 2020 के विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की अगुवाई वाले महागठबंधन के उम्मीदवार जीते थे।
उपचुनाव में महागठबंधन के हाथ से रामगढ़, तरारी और बेलागंज सीट निकल गई है। गया जिले की इमामगंज सीट पर जीतनराम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (लोकतांत्रिक) ने अपने पास रखी है। आरा जिले की तरारी विधानसभा सीट से 2020 के चुनाव में लेफ्ट पार्टी के सुदामा प्रसाद जीते थे। उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने तरारी विधानसभा सीट से पूर्व विधायक सुनील पांडे के बेटे विशाल को उम्मीदवार बनाया था। विशाल के सामने लेफ्ट से राजू यादव की चुनौती थी। विशाल ने राजू की चुनौती ध्वस्त कर तरारी में कमल खिला दिया है।
बेलागंज विधानसभा सीट से आरजेडी ने विधायक से सांसद बन चुके सुरेंद्र यादव के पुत्र विश्वनाथ को टिकट दिया था। सीट पर विश्वनाथ को नीतीश कुमार की अगुवाई वाली जनता दल (यूनाइटेड) की प्रत्याशी मनोरमा देवी ने मात दे दी। कैमूर जिले की रामगढ़ विधानसभा सीट पर जगदानंद सिंह के बेटे अजीत सिंह चुनाव हार गए हैं। जगदानंद सिंह का मजबूत गढ़ रही सीट पर उपचुनाव से पहले राजद के पास थी। जगदानंद सिंह के ही बेटे सुधाकर सिंह ने 2020 के चुनाव में रामगढ़ से जीत हासिल की थी। सुधाकर सिंह हालिया आम चुनाव में बक्सर सीट से लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुए थे।
वहीं रामगढ़ सीट पर उपचुनाव में बीजेपी के अशोक सिंह ने जीत हासिल की है। बीजेपी के अशोक का मुकाबला बीएसपी उम्मीवार से हुआ। इमामगंज सीट पर मांझी की बहू दीपा मांझी ने जीत हासिल की है। इमामगंज सीट पर आरजेडी के रोशन मांझी को हार का मुंह देखना पड़ा है। चार सीटों के उपचुनाव में महागठबंधन अपनी तीन सीटें भी नहीं बचा पाया। उपचुनाव नतीजों को बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले तेजस्वी यादव, आरजेडी और महागठबंधन के लिए खतरे की घंटी बताए जा रहे हैं।
उपचुनावों में आरजेडी और महागठबंधन का खाता भी नहीं खुल सका और अब तेजस्वी के नेतृत्व पर भी सवाल उठने लगे है। उपचुनाव वाली चार सीटों में से दो सीटें बेलागंज और रामगढ़ आरजेडी के ही पास थी। आरजेडी अपनी दोनों सीटें हार गई। आरजेडी ने दो सीटों पर जो उम्मीदवार दिए, वे पार्टी के बड़े नेताओं के बेटे थे। परिवारवाद के आरोप के बीच आरजेडी के यह उम्मीदवार जीत नहीं सके। आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह के सांसद बनने के बाद रामगढ़ सीट पर उपचुनाव हुआ, तब उनके दूसरे बेटे अजीत सिंह को आरजेडी ने मैदान में उतारा, लेकिन वोटर्स ने उन्हें रिजेक्ट कर दिया। यही हाल बेलागंज में सुरेंद्र यादव के बेटे का हुआ। जहानाबाद से सांसद बनने के बाद यादव ने अपनी बेलागंज सीट पर बेटे विश्वनाथ को उम्मीदवार बनवाया था लेकिन यहां भी पार्टी को झटका लग गया।
तेजस्वी के लिए सबसे बड़ी चिंता तरारी विधानसभा सीट पर हुई। इस पूरे इलाके में लेफ्ट के साथ आरजेडी के गठबंधन ने पिछले दो चुनाव में तेजस्वी को काफी फायदा पहुंचाया था लेकिन अब अगर तरारी सीट पर लेफ्ट उम्मीदवार की हार हुई है, तब यह बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता के लिए खतरे की घंटी माना जा रहा है।
इमामगंज में चला मांझी फैक्टर
इमामगंज सीट पर सबसे बड़ा फैक्टर मांझी और पासवान जाति के वोटर रहे। मांझी की बहू दीपा मांझी को उम्मीदवार बनाने की रणनीति एनडीए के लिए कारगर साबित हुई। इमामगंज सीट पर जन सुराज के उम्मीदवार जितेंद्र पासवान ने अच्छे खासे वोट हासिल किए। यह माना जा रहा है कि अगर जन सुराज का उम्मीदवार नहीं होता, तब आरजेडी के रोशन मांझी को भी जीत मिल सकती थी। वहीं बेलागंज सीट पर लड़ाई इलाके के बाहुबली रहे बिंदी यादव की पत्नी मनोरमा और सुरेंद्र यादव के पुत्र विश्वनाथ के बीच थी। सीट पर यादव मतदाता भी मनोरमा देवी के साथ गए। वहीं जन सुराज और ओवैसी की पार्टी के मुस्लिम उम्मीदवारों के मैदान में होने से भी आरजेडी के वोटों का बिखराव हुआ।
बिहार में अपनी ही सीटें नहीं बचा सका महागठबंधन……….लालू के लाल की दावेदारी पर खड़े हुए सवाल
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