नई दिल्ली । अदालतें जमानत आदेश पारित होने के छह महीने बाद आरोपी पर जमानत बांड जमा करने की शर्त नहीं लगा सकतीं। यह बात सुप्रीम कोर्ट ने कही। जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने कहा कि यदि अदालत मामले से संतुष्ट है तो उसे या तो जमानत दे देनी चाहिए या फिर याचिका खारिज कर देनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह बात 24 अक्टूबर को एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान की थी। जिसने पटना हाईकोर्ट के एक आदेश को चुनौती दी थी। यह मामला बिहार मद्यनिषेध और उत्पाद संशोधन अधिनियम से जुड़ा था, जिसके तहत एक शख्स को पटना हाईकोर्ट ने मामले में छह महीने बाद जमानत बांड प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। हाईकोर्ट ने व्यक्ति को 10,000 रुपये के बांड और इतनी ही राशि की दो जमानतें प्रस्तुत करने पर रिहा करने का निर्देश दिया था। याचिका पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, यह पिछले कुछ दिनों में हाईकोर्ट द्वारा पारित कुछ आदेशों में से एक है, जिसमें मामले का गुण-दोष के आधार पर निर्णय किए बिना हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को इस शर्त पर जमानत दे दी है कि याचिकाकर्ता-आरोपी आदेश पारित होने के छह महीने बाद जमानत बांड प्रस्तुत करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस बात का कोई कारण नहीं बताया गया कि जमानत देने के आदेश के क्रियान्वयन को छह महीने के लिए क्यों स्थगित किया गया। बेंच ने कहा, हमारी राय में किसी आरोपी को जमानत देने के लिए ऐसी कोई शर्त नहीं लगाई जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और गुण-दोष के आधार पर नए सिरे से निर्णय करने के लिए इसे 11 नवंबर को संबंधित अदालत के समक्ष सूचीबद्ध किया।
जमानत के छह माह बाद अदालतें बांड भरने के लिए नहीं कह सकतीं: सुप्रीम कोर्ट
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