नई दिल्ली । दिल्ली एनसीआर में हवा में प्रदूषण का स्तर सामान्य से ज्यादा हो चुका है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के प्रोजेक्ट सफर की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ल की हवा में प्रदूषण का स्तर खराब स्तर पर पहुंच चुका है। आने वाले दिनों में प्रदूषण का स्तर और बढ़ने की आशंका है। वहीं दूसरी तरफ 12 अक्टूबर को पराली जलाए जाने के लगभग 964 मामले सामने आए। सेटेलाइट से प्राप्त तस्वीरों में पराली की आग के चलते पंजाब, हरियाणा के साथ ही पाकिस्तान का पंजाब वाला हिस्सा सुर्ख लाल देखा जा सकता है। विशेषज्ञों के मुताबिक पराली जलाने से वायु प्रदूषण की समस्या तो बढ़ रही है, किसान अपने खेतों को बंजर बना रहे हैं। पराली जलाए जाने से मिट्टी में आवश्यक ऑर्गेनिक कार्बन की कमी बढ़ रही है। कार्बन का नाम सुनते ही आंखों के सामने काले धुएं की तस्वीर तैर जाती है। लेकिन ये कार्बन न हो तो आपको पेट भरने के लिए अनाज मिलना मुश्किल हो जाएगा। किसानों के हर साल पराली जलाने से जमीन में ऑर्गेनिक कार्बन में कमी आ रही है। इस ऑर्गेनिक कार्बन की कमी से जमीन बंजर हो सकती है। अगर मिट्टी में इसकी कमी हो जाए तो किसानों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले केमिकल फर्टिलाइजर भी काम करना बंद कर देंगे। मिट्टी में सामान्य तौर पर अगर आर्गेनिक कार्बन 5 फीसदी से ज्यादा है तो अच्छा है। लेकिन पिछले कुछ सालों में देश के कई हिस्सों में मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा 0.5 फीसदी पर पहुंच गई है जो बेहद खतरनाक स्थिति है। कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश भर से लिए गए 3. 4 लाख सैंपल की जांच के बाद पाया गया कि देश के 67 फीसदी हिस्से में मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन की कमी है। खास तौर पर पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक में। फसल अवशेष प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय नीति (एनपीएमसीआर) की रिपोर्ट के मुताबिक एक टन पराली जलाने से मिट्टी में मौजूद सभी ऑर्गेनिक कार्बन नष्ट हो जाते हैं। इसके साथ ही मिट्टी में मौजूद 5.5 किलोग्राम नाइट्रोजन, 2.3 किलोग्राम फॉस्फोरस, 25 किलोग्राम पोटैशियम और 1.2 किलोग्राम सल्फर भी नष्ट हो जाता है। मिट्टी में मौजूद वो सभी छोटे बड़े कीड़े मर जाते हैं जो जमीन को उपजाऊ बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं। अगर फसल अवशेष को मिट्टी में ही रखा जाए तो यह मिट्टी के पोषक तत्वों को और समृद्ध करेगा।
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