हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार पितृपक्ष के 16 दिनों तक हमारे पूर्वज धरती पर आकर हमें आशीर्वाद देते हैं। ये पितृ पशु पक्षियों के माध्यम से हमें देखने आते हैं। जिन जीवों तथा पशु पक्षियों के माध्यम से पितृ आहार ग्रहण करते हैं वो हैं – गाय, कुत्ता, कौवा और चींटी।
श्राद्ध के समय इनके लिए भी आहार का एक अंश निकाला जाता है, तभी श्राद्ध कर्म पूर्ण होता है। श्राद्ध करते समय पितरों को अर्पित करने वाले भोजन के पांच अंश निकाले जाते हैं – गाय, कुत्ता, चींटी, कौवा और देवताओं के लिए। इन पांच अंशों का अर्पण करने को पञ्च बलि कहा जाता है।
सबसे पहले भोजन की तीन आहुति कंडा जलाकर दी जाती है1 श्राद्ध कर्म में भोजन के पूर्व पांच जगह पर अलग-अलग भोजन का थोड़ा-थोड़ा अंश निकाला जाता है। गाय, कुत्ता, चींटी और देवताओं के लिए पत्ते पर तथा कौवे के लिए भूमि पर अंश रखा जाता है। फिर प्रार्थना की जाती है कि इनके माध्यम से हमारे पितर प्रसन्न हों।
कुत्ता जल तत्त्व का प्रतीक है ,चींटी अग्नि तत्व का, कौवा वायु तत्व का, गाय पृथ्वी तत्व का और देवता आकाश तत्व का प्रतीक हैं। इस प्रकार इन पांचों को आहार देकर हम पंच तत्वों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं। केवल गाय में ही एक साथ पांच तत्व पाए जाते हैं। इसलिए पितृ पक्ष में गाय की सेवा विशेष फलदाई होती है। मात्र गाय को चारा खिलने और सेवा करने से पितरों को तृप्ति मिलती है साथ ही श्राद्ध कर्म सम्पूर्ण होता है।
पितृ पक्ष में गाय की सेवा से पितरों को मुक्ति मोक्ष मिलता है। साथ ही अगर गाय को चारा खिलाया जाय तो वह ब्राह्मण भोज के बराबर होता है1 पितृ पक्ष में अगर पञ्च गव्य का प्रयोग किया जाय, तो पितृ दोष से मुक्ति मिल सकती है। साथ ही गौदान करने से हर तरह के ऋण और कर्म से मुक्ति मिल सकती है।
इसलिए पितृपक्ष में नहीं होते मांगलिक कार्य
पितृपक्ष के दौरान हमारे पूर्वज और पितर धरती पर उतरते हैं और हमें देखते हैं। एक बार पितर खुश हो जाएं तो वो आर्शीवाद देते हैं, जिसे मनोकामना पूर्ति होती है। पितृपक्ष काल को शुभ नहीं मानते। इसलिए इस दौरान हर शुभ कार्य वर्जित है, जैसे कि शादी, घर की खरीदारी या शिफ्टिंग, शादी की खरीदारी आदि। ठीक उसी प्रकार, जैसे कि घर में किसी परिजन की मत्यु के बाद घर में एक खास अवधि के लिए सभी मांगलिक कार्य रोक दिए जाते हैं।
धार्मिक मान्यता के मुताबिक इस दौरान हमारे पितर हमसे आत्मिक रूप से जुड़े होते हैं, पूजन नियम के जरिए हमें उनसे आशीर्वाद लेनी चाहिए।
पितृपक्ष के दौरान अपनी आदतों और शौकों पर थोड़ों नियंत्रण कर पितरों को खुश किया जा सकता है। ऐसी मान्यता है कि इस अवधि में हर तरह के शुभ कार्य से अपना ध्यान हटाकर अपने पितरों से जुड़ाव महसूस करना चाहिए।
गाय की सेवा से मिलता है पितरों का आशीर्वाद
कहा जाता है कि पितृपक्ष में पितृगण पितृलोक से धरती पर आ जाते हैं। इस समयावधि में पितृलोक पर जल का अभाव हो जाता है। इसलिए पितृपक्ष में पितृगण पितृलोक से भूलोक आकार अपने वंशजो से तर्पण करवाकर तृप्त होते हैं1 इसलिए जब व्यक्ति पर कर्जा हो तो वो खुशी मनाकर शुभकार्य कैसे सम्पादित कर सकता है। पितृऋण के कारण ही पितृपक्ष में शुभकार्य नहीं किए जाते।
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